Wednesday, November 12, 2014

“अधीक्षक की व्यथा”

CESA felicitated all the newly promoted Assistant Commissioners of Mumbai Zone on 8/11/2014. During the felicitation, one of the officer who is a Presidential Award Winner, narrated the poem composed by him. The poem is as under:


मंत्रालय और मुनिसिपालटीवाले,

अधीक्षक का मतलबहेडक्लार्क” समझते है

घरवाले इसे,
निरीक्षक से नीचेवाला मानते है
वाईफ(Wife) बोलती है,-
आपका निरीक्षक का जमाना कुछ और था
दिल्ली को भीइन्सपेक्टर राजबोलना पडा था
आपकी बॉडीलैंग्वेज (“Body Language”) और बातो में भी दम था
आपकी पहचान करवाते समय भी
हमे गर्व महसुस होता था
अब तो ऐसे लगते हो-
अब तो ऐसे लगते हो-
कि, सारी दुनिया का बोझ सर पर
लेकर घूम रहे हो
बी.पी.,Angioplasty और डायबेटीक को साथ लेकर,
रिटायरमेंट के बचे कुचे दिन काउंट करते रहते हो
आफिस के लिए घर से ढकेलने में तो हम कामयाब होते है

लेकिन जब शाम को आफिस से लौटते हो  
तब लगते हो-  
जैसे किसीको पहॅुंचाकर रहे हो
मैं इनको क्या बताउंमेरा दर्द क्या है ये तो मेरी घरवाली ही है
जिन्होंने मुझे चार चार प्रमोशन दिये
पतिपिता,ससुर और नाना भी बना दिया
पर-
पर आफिस में- ना मेरी कुर्सी बदली ना मेरा काम
३५ साल गुजर गये-
अब तो कुर्सी भी नसीब नही होती
ख़डे-ख़डे काम करकेवक्त निकाल रहा हॅू
मै इनको क्या बताउं  मेरा दर्द क्या है
रिटायरमेंट के दिन तक एक भी मेमो नहीं मिला
इसीको प्रमोशन मानकर,अपनी पीठ थपथपा रहा हॅू
मै इनको क्या बताउंमेरा दर्द क्या है
राजस्व पद तालिका के
समस्त अधिकारी,कर्मचारी,
और छोटेबड़े करदाता
एक ही तो व्यक्ति के पास’ आकर रुकते है
जब चाहेजैसे चाहे,अपना काम करवाते है
बस इसी को अधीक्षक कहते है  

- अविनाश रेडेकर


No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.